April 30, 2025 12:38 am

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अमरीकी वैज्ञानिकों का दावा चार साल के बाद भी टला नहीं कोविड का खतरा |

कोविड महामारी को पूरे चार साल बीत चुके हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में लोग इतने ज्यादा मसरूफ हैं कि शायद ही इस महामारी के भयावह काल की किसी को याद आती होती हो। अलबत्ता आनी भी नहीं चाहिए, लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो अतीत की गर्त में दफन हो चुकी इस बीमारी का अभी भी खतरा टला नहीं है। इस बीमारी से अभी तक देश की आबादी पूरी तरह से उबर नहीं पाई है।

अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के वैज्ञानिकों ने कोविड को लेकर बड़ा खुलासा किया है। वैज्ञानिकों को कोविड का दंश झेल चुके लोगों में 14 माह या दो साल के बाद भी उनके टिशू के नमूनों में कोविड के एंटीजन मिले हैं। इस अध्ययन से एक बात तो वैज्ञानिकों ने साबित कर दी है कि कोविड वायरस स्वस्थ इंसान के अंदर भी लंबे समय तक रह सकता है।

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लॉन्ग कोविड की समस्या ज्यादा गंभीर
इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के स्कूल ऑफ मेडिसिन और इन दोनों अध्ययन का नेतृत्व करने वाले शोधकर्ता डॉक्टर माइकल पेलुसो ने मीडिया को जारी किए गए बयान में कहा है कि ये अध्ययन इस बात के पुख्ता सबूत पेश करते हैं कि कुछ लोगों में कोविड-19 एंटीजन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के सामान्य बने रहने के बावजूद मौजूद रह सकते है।

इस अध्ययन के नतीजे तीन से छह मार्च 2024 के बीच डेनवर में रेट्रोवायरस पर आयोजित सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए थे। इस महामारी की शुरूआत में पहले यह माना जा रहा था कि कोविड-19 एक अल्पकालिक बीमारी है। हालांकि रोगियों की बढ़ती संख्या में महीनों या वर्षों बाद भी मस्तिष्क पर पड़ते प्रभावों के साथ-साथ, पाचन और रक्त प्रवाह सम्बन्धी समस्याएं जैसे स्थाई लक्षण अनुभव किए गए थे। जो दर्शाता है कि लॉन्ग कोविड की समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है।

171 लोगों के रक्त के नमूनों की जांच
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से संक्रमित हुए 171 लोगों के रक्त के नमूनों की जांच की थी। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के “स्पाइक” प्रोटीन को गहराई से जानने के लिए एक अति-संवेदनशील परीक्षण की मदद ली है। बता दें कि वायरस के मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने में यह “स्पाइक” प्रोटीन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो दर्शाते है कि कुछ लोगों में यह वायरस 14 महीनों तक बना रह सकता है।

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बिना संक्रमण के शरीर के अंदर मिला वायरस
रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जो लोग कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती हुए थे, उनमें अन्य संक्रमितों की तुलना में कोविड-19 एंटीजन के पाए जाने की आशंका करीब दोगुनी थी। इसके साथ ही इसकी सम्भावना उन लोगों में भी अधिक थी, जिन्होंने संक्रमण के दौरान गंभीर लक्षणों को अनुभव किया था।

हालांकि इन लोगों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था। चूंकि यह माना जाता है कि वायरस टिशुज में बना रहता है, इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के लॉन्ग कोविड टिश्यू बैंक से नमूने लिए थे। इनकी जांच से पता चला है कि संक्रमण के दो वर्ष बाद भी टिशुज में वायरस से जुड़े आरएनए के अंश मौजूद थे। हालांकि उन लोगों के दोबारा संक्रमित होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

अभी भी सक्रिय हो सकता
यह भी सामने आया है कि इनके अंश संयोजी ऊतकों में मौजूद थे, जहां प्रतिरक्षा कोशिकाएं मौजूद थी। यह दर्शाता है कि वे प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर कर सकते हैं। वहीं कुछ नमूनों से पता चला है कि वायरस अभी भी सक्रिय हो सकता है। ऐसे में देखा जाए तो यह एक कारण हो सकता है कि लोग बार-बार कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं।

ऐसे में कोरोना से जुड़े जोखिमों से बचने के लिए सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि क्या यह अंश लॉन्ग कोविड और उससे जुड़े जोखिमों जैसे दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकते हैं, इसे समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

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देश में कोरोना के 1,076 मामले सक्रिय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 वायरस अब तक दुनिया भर में 77,47,71,942 लोगों को संक्रमित कर चुका है। इनमें से 70,35,337 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि बाकी इस महामारी से उबर चुके हैं। हालांकि इनमें से बहुत से लोग अभी भी लॉन्ग कोविड से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं।

भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 12 मार्च 2024 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में कोरोना के 1,076 मामले अभी भी सक्रिय हैं। वहीं साढ़े चार करोड़ से ज्यादा लोग अब तक देश में इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 5,33,510 संक्रमितों की मृत्यु हो चुकी है जबकि 4,44,97,114 लोग इस बीमारी से उबर चुके हैं।

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