नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय करों के हिस्से में दिल्ली के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने का आरोप लगाया है। उन्होंने मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में दिल्ली के बजट और लेनदेन का तरीका दूसरे राज्यों की तरह ही होने के बावजूद दिल्ली को केंद्रीय करों के वैध हिस्से से वंचित किए जाने पर सवाल उठाए हैं।
केजरीवाल ने 16वें वित्त आयोग के गठन से पहले लिखे पत्र में कहा कि केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी 23 साल से रूकी हुई है। वित्त वर्ष 2022-2023 में दिल्ली को केवल 350 करोड़ मिले, जबकि 7,378 करोड़ मिलने चाहिए थे। दिल्लीवासियों ने आयकर में 1.78 लाख करोड़ का भुगतान किया, लेकिन केंद्र ने वित्त वर्ष 2023-24 में दिल्ली की हिस्सेदारी जीरो कर दी है। उन्होंने दिल्ली को एक अनूठा मामला मानकर इसे 16वें वित्त आयोग के संदर्भ की शर्तों में शामिल करने का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच एक अद्वितीय (‘सुई जेनेरिस’) दर्जा प्राप्त है। यह वित्तीय मामलों में अन्य राज्यों के समान ही काम कर रहा है। इसकी 1 दिसंबर 1993 से एक अलग संगठित निधि है। बजट की फंडिंग का पैटर्न कमोबेश दूसरे राज्यों के समान ही है। छोटे बचत ऋणों की सेवा सहित दिल्ली सरकार के वित्तीय लेनदेन अन्य राज्यों की तरह अपने स्वयं के संसाधनों से पूरे किए जा रहे हैं। इसके बावजूद दिल्ली सरकार को दूसरे राज्यों की तरह न तो केंद्रीय करों के हिस्से में से वैध राशि मिलती है और न ही अपने स्थानीय निकायों के संसाधनों की पूर्ति के लिए कोई हिस्सा मिलता है। उन्होंने इस पर गम्भीरता से ध्यान देते हुए दिल्ली को भी 16वें वित्त आयोग के दायरे में लाने का अनुरोध किया।