April 29, 2025 5:44 pm

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अधूरी रह गयी पाकिस्तान में अपने पुश्तैनी मकान और स्कूल को फिर देख पाने की इच्छा, बचपन बीता था डॉ. मनमोहन सिंह का यहाँ |

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और विख्यात अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे और उनके निधन से देश में शोक की लहर दौड़ गई। केंद्रीय सरकार ने सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है और शुक्रवार को होने वाले सभी सरकारी कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है। उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक प्रेरणास्त्रोत था, जिसमें उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए। लेकिन उनके जीवन में एक ऐसी अधूरी इच्छा थी, जिसे वह कभी पूरा नहीं कर सके। यह इच्छा थी अपने पाकिस्तान स्थित पैतृक गांव और स्कूल को देखने की।

डॉ. मनमोहन सिंह की बचपन की यादें
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पाकिस्तान के गाह गांव में हुआ था, जो इस्लामाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित है। उनका परिवार विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आ गया था। इस दौरान उनका बचपन और पहली शिक्षा पाकिस्तान में ही हुई थी। उन्होंने कक्षा चार तक की पढ़ाई अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में की थी। विभाजन के बाद डॉ. मनमोहन सिंह और उनके परिवार को पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा, और इसके बाद उनका संपर्क अपने पैतृक गांव से पूरी तरह टूट गया था। हालांकि, उनके दिल में हमेशा अपने बचपन के दिनों की यादें ताजातरीन रही थीं और उनका सपना था कि एक दिन वह वापस पाकिस्तान जाकर अपने गांव और स्कूल को देख सकें।

अधूरी इच्छा का खुलासा
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने एक इंटरव्यू के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह की एक ऐसी अधूरी इच्छा का खुलासा किया, जिसे वह कभी पूरा नहीं कर सके। शुक्ला ने बताया कि एक बार जब वे डॉ. मनमोहन सिंह के साथ प्रधानमंत्री हाउस में बैठे थे, तो डॉ. सिंह ने पाकिस्तान जाने की इच्छा व्यक्त की थी। जब शुक्ला ने उनसे पूछा कि वे पाकिस्तान में कहां जाना चाहते हैं, तो डॉ. सिंह ने जवाब दिया, “मैं अपने गांव जाना चाहता हूं।” राजीव शुक्ला के अनुसार, डॉ. मनमोहन सिंह ने बताया था कि उनका घर तो अब समाप्त हो चुका था, लेकिन उनका दिल उस स्कूल को देखने का था, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। यह सुनकर शुक्ला ने पूछा, “क्या आप अपना पुश्तैनी घर देखना चाहते हैं?” तो डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, “नहीं, मेरा घर तो अब खत्म हो गया है। मुझे उस स्कूल को देखना है, जहां मैंने कक्षा चार तक पढ़ाई की थी।”यहां तक कि एक बार जब डॉ. मनमोहन सिंह पाकिस्तान गए थे, तो उन्होंने इस इच्छा को व्यक्त किया था कि वे अपने गांव और स्कूल जाना चाहते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश, वे कभी इस यात्रा पर नहीं जा सके और उनका यह सपना अधूरा ही रह गया।

डॉ. मनमोहन सिंह का संघर्ष और सफलता
मनमोहन सिंह का जीवन भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण था। विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और फिर विदेश में काम किया। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया और 1991 में भारतीय वित्त मंत्री के रूप में देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। उनका कार्यकाल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हुआ, खासकर जब उन्होंने खुले बाजार की नीतियों और मुक्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। इसके अलावा, 2004 से 2014 तक वह भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे, और इस दौरान उन्होंने देश के विकास के लिए कई अहम फैसले लिए। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में एक नई दिशा देने वाला था। उन्हें हमेशा एक जिम्मेदार, शांत और सशक्त नेता के रूप में याद किया जाएगा।

विभाजन के दर्द की यादें और अधूरी इच्छा
मनमोहन सिंह का जीवन विभाजन के दर्द से भरा हुआ था, जब उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आया था। उन्होंने इस दर्द को हमेशा अपने दिल में महसूस किया था, और अपने बचपन के घर और स्कूल को देखकर अपनी जड़ों से जुड़ने की इच्छा हमेशा उनके दिल में रही। यह एक ऐसा सपना था जो कभी पूरा नहीं हो सका।

केंद्र सरकार ने किया राष्ट्रीय शोक का ऐलान 
डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर केंद्र सरकार ने सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। डॉ. मनमोहन सिंह की मृत्यु के बाद कई प्रमुख नेताओं और व्यक्तित्वों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।

डॉ. मनमोहन सिंह की जीवंत धरोहर
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक कूटनीति में हमेशा अमूल्य रहेगा। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो न केवल उनके राजनीतिक कार्यों, बल्कि उनके मानवतावादी दृष्टिकोण और शांति की चाहत को भी दर्शाता है। उनका यह अधूरा सपना भी इस बात को जाहिर करता है कि वह अपने बचपन की यादों से कितने जुड़े हुए थे और अपने गांव और स्कूल को देखने की चाहत उनके दिल में हमेशा बनी रही।

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