उत्तर प्रदेश में 115 साल पुराना कानून बदलने जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रजिस्ट्री दस्तावेजों से उर्दू-फारसी शब्दों को हटाने का फैसला लिया है। इसके साथ ही अब रजिस्ट्री में उर्दू-फारसी की जगह हिंदी भाषा लेगी।

एक्ट में संशोधन के बाद रजिस्ट्री की भाषा होगी आसान
बता दें कि स्टांप एवं पंजीकरण विभाग 1908 में बने रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीन चलता है। दावा किया जा रहा है कि रजिस्ट्रेशन एक्ट में संशोधन के बाद रजिस्ट्री की भाषा आसान हो जाएगी। नए नियम से स्टांप और पंजीकरण विभाग में नियुक्ति के लिए अब उर्दू-फारसी की परीक्षा पास करने की अनिवार्यता भी समाप्त होगी। रजिस्ट्रेशन एक्ट में उर्दू फारसी भाषा के इस्तेमाल को ज्यादा बढ़ावा दिया गया था। स्टांप एवं पंजीकरण विभाग में सब रजिस्ट्रार की नियुक्ति लोक सेवा आयोग से होती थी। लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद सब रजिस्ट्रार को उर्दू इमला की भी एक परीक्षा पास करनी होती थी। सब रजिस्ट्रार को उर्दू के शब्दों को लिखना, बोलना, सही अनुवाद करना और सही व्याकरण के साथ समझना अनिवार्य होता था। उर्दू इमला की परीक्षा पास किए बिना सब रजिस्टार की नौकरी को स्थाई नहीं माना जाता था।

अभी तक इन शब्दों का होता था इस्तेमाल
बैनामा (विक्रय पत्र), वल्दियत (पिता का नाम), वल्द (पिता), रकबा (क्षेत्रफल), तरमीम (बदल देना), सकूनत (निवास), जोजे (पत्नी), वारिसान (उत्तराधिकारी), रहन (गिरवी), बयशुदा (खरीदी), बैय (जमीन बेचना), मिनजानिब (की ओर से), दुख्तर (बेटी), कौमियत (जाति), शामलात (साझी भूमि), राहिन (गिरवी देने वाला), बाया (जमीन बेचने वाला), वाहिब (उपहार देने वाला), मोहबइला (उपहार लेने वाला) आदि जैसे शब्द अब तक इस्तेमाल होते आ रहे हैं।
इस फैसले पर जल्द ही प्रस्ताव कैबिनेट में होगा पेश
उर्दू और फ़ारसी अल्फाज को हिंदी शब्दों से बदलने के लिए स्टाम्प और रेजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 में अहम बदलाव किए जा रहे हैं। राज्य सरकार इस फैसले को लेकर जल्द ही प्रस्ताव कैबिनेट में पेश करेगी।